रांची। झारखंड में एमबीबीएस की पढ़ाई के बाद सरकारी डॉक्टर बनने पर डॉक्टरों को तीन साल का बांड भरने के मामले को लेकर आवाजें उठने लगी है. राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में अध्ययनरत मेडिकल छात्रों के साथ-साथ जूनियर डॉक्टर एसोसिएशन ने इस मामले में मोर्चा खोलते हुए सरकार और स्वास्थ्य विभाग की नीयत पर सवाल उठाया है. सोशल मीडिया के जरिए रिम्स जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन के डॉ विकास कुमार ने कहा है कि सरकार अपनी स्वास्थ्य व्यवस्था की विफलता को छिपाने के लिए एमबीबीएस के बाद ग्रामीण एरिया में सेवा का बॉन्ड, पीजी एमसीएच के बाद बॉन्ड लाए जा रही है. अगर यहीं नीति है तो इंजीनियरिंग, लॉ, एमबीए और बीएड के अलावा अन्य कोर्स करने वालों पर भी यह लागू होना चाहिए.
डॉक्टरी की पढ़ाई करने वाले मेडिकोज का यह कहना है कि क्या विकास का दारोमदार सिर्फ डॉक्टरों पर है? इसके खिलाफ रिम्स के जूनियर डॉक्टर एसोसिएशन ने मोर्चा खोल दिया है. वहीं देशभर से उन्हें डॉक्टरों का साथ मिलने लगा है. बताते चलें कि झारखंड में मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद डॉक्टरों से ग्रामीण इलाकों में सेवा देने का बॉन्ड साइन कराया जा रहा है. वहीं ऐसा नहीं करने की स्थिति में उन्हें एकमुश्त राशि हर्जाना के रूप में देना है.
नियम से कम हो जाएंगे पढ़ने वाले
बॉन्ड को लेकर छिड़ी जंग में पॉरस अस्पताल के सीनियर डॉक्टर संजय का कहना है कि अगर इसी तरह नियम बनते गए तो झारखंड में मेडिकल पढ़ने वाले छात्र कम होते जाएंगे. भारत एक मेडिकल टूरिज्म की तरफ बढ़ रहा है. ऐसे अव्यवहारिक नियमों से इसे धक्का लगेगा.