रांची। तकरीबन 22 साल 11 महीने पहले राज्य के तौर पर अस्तित्व में आए झारखंड में अब तक दस राज्यपाल नियुक्त हुए हैं. इनमें से वर्ष 2004 से 2009 के बीच राज्यपाल रहे सैयद सिब्ते रजी और अब दसवें राज्यपाल के रूप में कार्यरत रमेश बैस का कार्यकाल राजनीतिक विवादों के लिए याद किया जाएगा
झगड़ा पूर्व राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी की भूमिका पर वर्ष 2005 में उस वक्त तीव्र विवाद खड़ा हुआ था, जब उन्होंने विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के नेता के बजाय यूपीए के लीडर शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी थी. बहुमत साबित न कर पाने के कारण नौ दिनों बाद ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था और तब अर्जुन मुंडा ने सीएम पद की शपथ ली थी.
मौजूदा राज्यपाल रमेश बैस का कार्यकाल 7 जुलाई 2021 से शुरू हुआ है. इनके अब तक के लगभग सवा वर्षों के कार्यकाल में राजभवन और राज्य सरकार के बीच कम से कम तीन-चार मौकों पर मतभेद-तनाव और असहमति की खबरें सामने आ चुकी हैं. बीते दो महीने से राज्य में भारत निर्वाचन आयोग की एक चिट्ठी को लेकर सियासी रस्साकशी चल रही है. इसमें एक सिरे पर राज्यपाल रमेश बैस हैं तो दूसरे सिरे पर राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन.
यह सीलबंद चिट्ठी बीते 25 अगस्त को नई दिल्ली से रांची स्थित राजभवन पहुंची. चुनाव आयोग की यह चिट्ठी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की योग्यता-अयोग्यता तय किये जाने के संबंध में है, लेकिन 59 दिन बाद भी इसका आधिकारिक तौर पर खुलासा नहीं हुआ है कि इस चिट्ठी का मजमून क्या है? मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और राज्य के सत्ताधारी गठबंधन का आरोप है कि इस चिट्ठी का खुलासा न किये जाने से राज्य में राजनीतिक अनिश्चितता और भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है. दूसरी तरफ राज्यपाल ने सार्वजनिक तौर पर कह दिया है कि यह उनका अधिकार क्षेत्र है कि वह इस चिट्ठी पर कब और क्या निर्णय लेंगे? इसपर किसी को सवाल नहीं उठाना चाहिए.
बीते 15 अक्टूबर को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सीएम हाउस में पत्रकारों से बात करते हुए कहा, मैं पूरे देश का पहला मुख्यमंत्री हूं, जो चुनाव आयोग से लेकर राज्यपाल तक के दरवाजे पर जाकर, उनके सामने हाथ जोड़कर यह बताने का आग्रह कर रहा है कि अगर मेरा कोई गुनाह है तो इसके लिए मेरी क्या सजा मुकर्रर की गई है? मैं उनसे बार-बार पूछ रहा हूं कि उनके अनुसार मैं वाकई गुनहगार हूं तो मुख्यमंत्री के पद पर मैं कैसे बना हुआ हूं?
हेमंत सोरेन ने इसी प्रेस कांफ्रेंस के दौरान राज्यपाल का नाम लिए बगैर संवैधानिक संस्थाओं की विश्वसनीयता और पारदर्शिता पर भी सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि केंद्रीय एजेंसियां जिस ढर्रे पर काम कर रही हैं, उससे यही लगता है कि उनके पीछे कोई शक्ति है जिनके इशारे पर चलने को वो मजबूर हैं.
इधर राज्यपाल रमेश बैस ने सरकार के निर्णयों से लेकर सरकार की ओर से विधानसभा में पारित किए गए विधेयकों पर पिछले आठ-दस महीने में कई बार सवाल उठाये हैं. बीते फरवरी महीने में राज्यपाल ने राज्य में जनजातीय सलाहकार परिषद (टीएसी) के गठन को लेकर राज्य सरकार द्वारा बनायी गयी नियमावली पर कई सवाल उठाये थे. राज्यपाल रमेश बैस ने राज्य सरकार की ओर से जून 2021 में बनाई गई नियमावली को संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत और राज्यपाल के अधिकारों का अतिक्रमण बताते हुए केंद्र के पास शिकायत की थी. उन्होंने टीएसी की नियमावली और इसके गठन से संबिधत फाइल राज्य सरकार को वापस करते हुए इसमें बदलाव करने को कहा था. महीनों बाद भी इस मामले पर राजभवन और सरकार में गतिरोध बरकरार है.
राज्यपाल बीते महीनों में राज्य सरकार की ओर से विधानसभा में पारित एंटी मॉब लिंचिंग बिल, कृषि मंडी बिल सहित आधा दर्जन बिल अलग-अलग वजहों से लौटा चुके हैं. हाल में उन्होंने सरकार की ओर से कोर्ट फीस वृद्धि को लेकर पारित विधेयक को भी पुनर्विचार के लिए लौटाया है. पिछले हफ्ते राज्य के पर्यटन, सांस्कृतिक विकास, खेलकूद और युवा मामलों विभाग के कामकाज के रिव्यू के दौरान राज्यपाल ने असंतोष जताते हुए यहां तक टिप्पणी की थी कि राज्य में विजन की कमी साफ दिखती है. कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि झारखंड में राजभवन और राज्य सरकार के बीच तनाव और टकराव की पटकथा में आगे कई अध्याय लिखे जाने बाकी हैं.