रांची। झारखंड में नगर निकायों का चुनाव प्रस्तावित है. बहुत जल्द राज्य में नगर निकायों का चुनाव होना है. राज्य निर्वाचन आयोग की तरफ से तैयारी पूरी कर ली गयी है. सबकुछ ठीक रहा तो अगले महीने निकाय चुनाव की घोषणा हो सकती है. संभावना है कि दिसंबर महीने में नगर निकाय का चुनाव करा लिया जाय. इस बीच नगर निकाय के चुनाव पर राज्य की राजनीति एक बार फिर गरम है. निकाय चुनाव की राजनीति के केंद्र में ओबीसी है. प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा ने निकाय चुनाव में ओबीसी को आरक्षण नहीं दिए जाने का मुद्दा उठाया है. वहीँ भाजपा की सहयोगी पार्टी आजसू ने इस मामले को लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.
अब सवाल यह उठता है कि जब भाजपा की सरकार थी उस समय भी नगर निकाय के चुनाव हुए थे. लगातार पांच वर्षों तक भाजपा ने राज्य में पूर्ण बहुमत की सरकार चलायी. भाजपा के सभी नेता उस समय जोर-जोर से डबल इंजन की सरकार होने का दंभ भरते नहीं अघाते थे. उस समय भाजपा की तरफ से एक बार भी ओबीसी को निकाय चुनावों में आरक्षण देने को लेकर कोई कदम नहीं उठाया गया. तत्कालीन विपक्ष के साथ साथ भाजपा की सहयोगी पार्टी आजसू ने पिछली सरकार में पिछड़ों को आरक्षण देने की मांग की थी लेकिन सरकार ने उनकी एक नहीं सुनी थी. अब भाजपा इस मुद्दे को लेकर आन्दोलन की रूपरेखा तैयार की है. सत्ता के गलियारे में अब यह सवाल उठ रहा है कि जब भाजपा के पास कानून बनाने का अधिकार जनता से मिला था उस समय तो वह इसपर कुछ नहीं की अब हाय तौबा मचाने की वजह क्या है.
झारखंड में सबसे बड़ी आबादी है पिछड़ी जाति की
दरअसल, राज्य की सभी राजनीतिक पार्टियां मिशन 2024 पर काम शुरू कर दी है. झारखंड में वर्ष 2024 में ही विधानसभा के चुनाव होने हैं. सभी पार्टियां लोकसभा के साथ साथ विधानसभा चुनाव पर भी रणनीति बनानी शुरू कर दी है. इससे पहले पंचायत के चुनाव हुए उसमें भी पिछड़ी जाति को आरक्षण का लाभ नहीं मिला. अब निकाय चुनाव कभी भी हो सकता है. इसमें भी पिछड़ी जाति को आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा रहा है. गौरतलब है कि झारखंड में सबसे ज्यादा आबादी पिछड़ी जाति का है. जाहिर है कि इस जाति को अपने पाले में करने का प्रयास सभी राजनीतिक दल करेंगे. निकाय चुनाव में पिछड़ों को आरक्षण नहीं दिए जाने को राजनीतिक रंग इसी वजह से दिया जा रहा है. भाजपा के हायतौबा मचाने की एक वजह यह भी है कि हेमंत सरकार ने राज्य की नौकरियों में पिछड़ों को 27 फीसदी आरक्षण देने का नीतिगत निर्णय ले लिया है. सरकार इसको लेकर विधानसभा के शीतकालीन सत्र में विधेयक ला सकती है और उसके बाद केंद्र सरकार के पास भेज सकती है. भाजपा को यह लग रहा है कि पिछड़ों के मामले में हेमंत सोरेन ने यह निर्णय लेकर बाजी मार ली है ऐसे में निकाय चुनाव में पिछड़ों के आरक्षण का मुद्दा बनाकर वह अपनी पैठ पिछड़े समुदाय में कायम कर सकती है.