रांची। झारखंड की सरकार लगातार क्वालिटी एजुकेशन देने का दंभ तो भर रही है लेकिन सूबे के 95 प्रतिशत स्कूलों में स्थायी प्राचार्य नहीं हैं. मात्र 5 प्रतिशत स्कूलों में ही स्थायी प्राचार्य हैं. ऐसे में सरकार की क्वालिटी एजुकेशन देने की बात एक तरह से छलावा है.राज्य के मिडिल स्कूलों में प्रिंसिपल के कुल 3226 पद सृजित हैं. इनमें से वर्तमान में 3096 पद रिक्त हैं. वहीं सिर्फ 130 प्रिंसिपल के भरोसे प्राइमरी व मध्य विद्यालयों को संचालित किया जा रहा है. यानि सिर्फ पांच फीसदी स्कूलों में स्थायी प्रिंसिपल हैं, जबकि 95 प्रतिशत स्कूल प्रभारी प्रिंसिपल के भरोसे संचालित किए जा रहे हैं.
क्या है मुख्य वजह
राज्य के 95 प्रतिशत स्कूलों में स्थायी प्रिंसिपल के नहीं होने की मुख्य वजह रिटायर होने के बाद प्रिंसिपल के रिक्त पदों पर नियुक्ति नहीं होना है.पिछले कई वर्षों से स्थायी प्रिंसिपल की नियुक्ति नहीं हुई है. प्रभारी प्राचार्य के भरोसे स्कूलों को संचालित किया जा रहा है. प्रिंसिपल की नियुक्ति के बिना स्कूलों में क्वालिटी एजुकेशन की बात बेमानी है. प्रिंसिपल का पद रिक्त रहने का सीधा असर स्कूलों के शैक्षणिक और प्रशासनिक कार्यों पर पड़ रहा है. स्थाई प्रिंसिपल की तरह प्रभारी प्रिंसिपल में आत्मविश्वास नहीं होता है. इसकी वजह यह है कि प्रभारी प्रिंसिपल को लगता है कि कुछ दिन के लिए ही बने हैं. स्थायी प्रिंसिपल के आते ही हट जाएंगे. गौरतलब है कि शिक्षक संगठनों द्वारा विभागीय मंत्री और अधिकारियों को स्थायी प्रिंसिपल के पद रिक्त रहने की ओर कई बार ध्यान आकृष्ट कराया गया. लेकिन आज तक इन पदों को भरने की दिशा में पहल तक शुरू नहीं हो सकी.
राज्य के 24 जिलों में से 7 जिलों में प्रिंसिपल ही नहीं
झारखंड में कुल 24 जिले हैं. इनमें से सात जिलों के मध्य विद्यालयों में एक भी परमानेंट प्रिंसिपल नहीं हैं. इनमें हजारीबाग, चतरा, सरायकेला, लोहरदगा, रामगढ़, साहेबगंज और पाकुड़ शामिल हैं. वहीं, कोडरमा, पश्चिमी सिंहभूम, सिमडेगा, जामताड़ा सहित पांच जिलों के लिए सिर्फ एक स्थाई प्रधानाध्यापक हैं.