विक्रम संवत के मौके पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लोहरदगा द्वारा पथ संचलन निकाला गया

लोहरदगा। चैत्र नवरात्रि के पहले दिन 22 मार्च को हिंदू नववर्ष विक्रम संवत 2080 के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लोहरदगा के द्वारा पथ संचलन नगर क्षेत्र स्थित ललित नारायण स्टेडियम से शुरुआत कर बरवाटोली, महावीर चौक, शास्त्री चौक, थाना टोली, शिवाजी चौक होते हुए पुण: स्टेडियम में समापन की गई. पथ संचलन में 350 स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश के साथ भाग लिया। कार्यक्रम में मुख्य रूप से प्रांत प्रचारक गोपाल शर्मा, प्रांत संघचालक सच्चिदानंद अग्रवाल, जिला संघचालक मनोज कुमार दास एवं सह संघचालक श्याम सुंदर उरांव जी रहे। कार्यक्रम में अतिथियों के द्वारा महापुरुषों और भारत माता के चित्र पर पुष्प अर्पण, वर्गगीत व मूल वचनों पढ़ा गया। पथ संचलन के पश्चात बौद्धिक सत्र का आयोजन किया गया. जिसमें प्रांत प्रचारक गोपाल शर्मा जी ने संबोधन करते हुए आज के दिवस को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 ई से लेकर लगातार भगवा ध्वज को श्रेष्ठ माना है। इसकी स्थापना डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने अल्प आयु में ही अपने देश के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए परिवार और व्यक्ति के स्वयं की मोह और चिंता से उपर उठकर समाज और देश के लिए चिंता की. डॉ हेडगेवार का मानना था कि हमारी हिंदुत्व संस्कृति हजारों हजारों वर्ष पुराना है हमारा भारत की भूमि पर अनेकों के महापुरुषों ने जन्म लिया. विद्या और अध्यात्म का केंद्र रहा फिर भी हमारे लोगों के ऊपर प्रताड़ना एवं बहन बेटियों की असुरक्षा गुलामी कैसे मिल सकती है. कहीं ना कहीं हमारी समाज की बीच की कमजोरियों को दूर कर अपने मूल हिंदुत्व सनातन की संस्कृति को मजबूत करने की आवश्यकता है और इसके लिए व्यक्ति में स्वयं की इच्छा बहुत ही आवश्यक है. इसी निमित्त राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की उन्होंने स्थापना की जिसमें एक स्वयंसेवक अपनी ही स्वयं के सहयोग से सारी व्यवस्था को सुनिश्चित करते हुए देश के प्रति उनका समरस भाव, दायित्व एवं संकटों से लड़ने की क्षमता पैदा करता है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सबसे बड़ी संगठन है. आज तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अलावा कोई बड़ी संगठन नहीं बन पाया उसका मूल कारण यह है कि वह किसी ना किसी पर आश्रित हैं या यदि हैं भी तो कई टुकड़े में विभक्त है. परंतु राष्ट्रीय स्वयंसेवक के कार्यकर्ता राष्ट्र और समाज की स्वयं की जिम्मिवारी समझते है। इसी भाव का सबसे बड़ा उदाहरण वर्तमान में वैश्विक महामारी में किस प्रकार से हमारे स्वयंसेवक स्वयं की इच्छा से आगे आकर लोगों को मदद की. किन्ही को दवाई जरूरत की सामग्रियां यदि किन्ही की मृत्यु हो गई और उन्हें अंतिम संस्कार करने वाला कोई नहीं था उसमें भी हमारे स्वयंसेवक पीपी कीट पहनकर उनका अंतिम संस्कार भी कराया वह किसी के कहने पर नहीं किए. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ केवल शाखा का निर्माण करती है और शाखा में ही समाज और देश के प्रति उनके कर्तव्यों का संचार हो जाता है और किसी प्रकार की विपदा में वह लोगों के बीच खड़े रहते हैं. हमने भगवान राम को महा पुरुषोत्तम माना और आज के ही दिन भगवान राम का राज्याभिषेक हुआ था साथ ही चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ऐसे ही सृष्टि की रचना किस रुआत ब्रह्मा जी ने की थी. हम सभी प्रकृति को पूजने वाले हैं हम लोग पेड़ पहाड़ जीवो में भी ईश्वर का रूप देखते हैं पहले अंग्रेजों के समय में वृक्षों को पूजा करते देख हुआ हंसते थे. परंतु हमारी हिंदू संस्कृति हमें प्रकृति की भी संरक्षण करना सिखाती हैं जिसे कि आज पूरी दुनिया भी अपना रही है। आज पूरी दुनिया मान रही कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सब कुछ कर सकता है उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं।

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