सरायकेला। सरायकेला नगरपंचायत कार्यालय ने अभी तक किरायेदारों की जानकारी अनिवार्य रूप से दिए जाने का कोई नियम नहीं बनाया है. अगर किसी मकान मालिक या किरायेदार को ही कभी जरूरत रहती है तो वही स्वेच्छा से नगरपंचायत को जानकारी उपलब्ध कराते हैं. अनिवार्यता नहीं रहने के कारण ही शहरी क्षेत्र के सैकड़ों मकान, कमरे एवं गोदाम के किरायेदारों की सही जानकारी नगरपंचायत के पास नहीं है. ऐसे राजस्व संग्रहण सहित सार्वजनिक सुरक्षा के मामलों में प्रतिनिधियों की चुप्पी भी आश्चर्यजनक है.
किरायेदारों के संबंध में जानकारी सर्वे के दौरान दर्ज की जाती है
अनेक गृहस्वामी अपने मकानों के अतिरिक्त या खाली पड़े कमरे जरूरतमंद को किराये पर दे देते हैं. उनके लिये यह एक अतिरिक्त आय का स्रोत बन जाता है. जबकि कुछ पैसे वाले व्यवसाय के तर्ज पर भी मकान बना कर किराये में लगाते हैं. नगर में कितने घर किराये पर लगे हैं इसकी कोई जानकारी नगरपंचायत के पास नहीं है. नगरपंचायत के कार्यपालक पदाधिकारी से पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि सभी मकान मालिक किरायेदार की जानकारी नहीं देते हैं. सर्वे के दौरान किरायेदारों के संबंध में जानकारी मिलती है तो उसे रिकार्ड में दर्ज किया जाता है. जब भी जरूरत पड़ती है सर्वे कराया जाता है.
नगर के गुप्त गोदामों से भी अनजान है नगरपंचायत
नगरपंचायत कार्यालय से मिली जानकारी अनुसार व्यवसायिक उपयोग होने वाले मकान एवं कमरों का कर भी व्यवसायिक तर्ज पर लेने का नियम है. मात्र व्यवसायिक कर से बचने के लिये अनेक मकान मालिक एवं किरायेदार बिना नगरपंचायत एवं प्रशासन को जानकारी दिए आपस में करार कर लेते हैं. सरायकेला-खरसावां जिले की सीमा ओड़िशा एवं प. बंगाल से लगी हुई है. जिले के कुछ सुदूरवर्ती क्षेत्र में निरंतर नक्सली सुगबुगाहट जारी रहती है. जबकि नगरीय क्षेत्र में ड्रग्स कारोबारी एवं साइबर सहित अन्य आपराधिक गतिविधि में लिप्त अपराधियों को भी पुलिस पकड़ती रहती है. इसलिये किरायेदारों की जानकारी सुरक्षा के लिहाज से भी जरूरी है. दूसरी तरफ जनप्रतिनिधि भी इससे उदासीन नजर आते हैं. विविध कार्यक्रमों के नाम पर चौक चौराहों पर एवं सोशल मीडिया में ही सक्रियता अधिकांश जनप्रतिनिधियों का रूटीन बन कर रह गया है. सामूहिक जनसुरक्षा या जनकल्याण की अपेक्षा कुछ के इशारों पर ही चलते रहना संभवत: इनकी कोई बाध्यता है.