जामताड़ा। महान समाज सुधारक और शिक्षाविद् पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर की कर्मभूमि जामताड़ा करीब डेढ़ दशक से साइबर अपराध के लिए कुख्यात है. यहां के साइबर अपराधी केन्द्रीय मंत्री, सांसद, सिने स्टार, ब्यूरोक्रेट,न्यायिक व पुलिस अधिकारी,डॉक्टर समेत कई वीवीआईपी को भी चूना लगा चुके हैं. बेशुमार दौलत कमाने की चाहत और ईजी मनी के चक्कर में जामताड़ा के करमाटांड़ प्रखंड की युवा पीढ़ी साइबर अपराध के दलदल में फंसकर बर्बाद हो रही है. साइबर थाना पुलिस ने पिछले 4 वर्षों में यानी साल 2018 से अब तक करीब 624 साइबर अपराधियों को गिरफ्तार किया है. उनके पास से 76 लाख 94 हजार 890 रुपए हुए हैं. इसके साथ ही 1194 मोबाइल, 2137 सिम, चारपहिया, दोपहिया वाहन समेत अन्य सामान भी बरामद किए गए हैं.
अब तो पुलिस महकमा भी यह मानने लगा है कि करमाटांड़ के ग्रामीण इलाकों में अगर आंख मुंदकर पत्थर फेंको, तो जिस घर में यह गिरेगा वहां से साइबर अपराधी मिल जाएंगे. साइबर अपराध की जड़ें करमाटांड़ के साथ-साथ समीपवर्ती नाराणपुर और जामताड़ा प्रखंड में भी जम चुकी हैं. तीनों प्रखंडों के 100 से अधिक गांवों के युवा इस काले धंधे में लिप्त हैं. इनमें कई तो राज्य के अंदर व बाहर की जेल यात्रा भी कर चुके हैं, या कर रहे हैं. यही नहीं, जेल से छूटते ही साइबर अपराधी दोबारा फीशिंग और साइबर फ्रॉड से जुड़ जा रहे हैं.
पिता चुनते थे कबाड़, बेटे ने खड़ी कर ली करोड़ों की दौलत
पिछले वर्ष जामताड़ा के सोनबाद गांव निवासी साइबर अपराधी आनंद रक्षित हाईकोर्ट के आदेश पर जामताड़ा कोर्ट में 20 लाख रुपए जमा कर जमानत पर छूटा था. यह मामला सुर्खियों मे रहा था. आनंद रक्षित के पिता कभी कबाड़ चुनकर बड़ी मुश्किल से अपने परिवार के लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ कर पाते थे. लेकिन अचानक आनंद रक्षित को कौन सा जादुई तिलस्म हासिल हुआ कि उसके घर में धनवर्षा होने लगी और देखते ही देखते करोड़ो की संपत्ति खड़ी करने में सफल हो गया. उसके घर हुई छापेमारी में नारियल तेल के डिब्बे और बोरियों में भरे 21 लाख 4 हजार 840 रुपए जब्त हुए थे. हालांकि उसकी गिरफ्तारी नहीं हो सकी थी.
साल 2007-08 में फूटनी शुरू हुईं साइबर क्राइम की जड़ें
जामताड़ा में साइबर क्राइम की जड़ें साल 2007-08 में फूटनी शुरू हुईं. तब यहां के कुछेक युवा मोबाइल कंपनियों के कस्टमर केयर का झांसा मोबाइल उपभोक्ताओं को फोन करते थे. इनके झांसे में जो लोग आ जाते थे, उनके मोबाइल का बैलेंस ही उड़ा लेते थे. बाद में आधी कीमत पर बैलेंस को बेच दिया करते थे. इसके बाद इंटर बैकिंग का दौर शुरू हुआ. डिजीटलाइजेशन के दौर में बैकिंग सेवा को सुविधाजनक और आसान बनाने की पहल हुई. बैंकों के खाताधारक इस सुविधा से जुड्ते गए. इसके बाद यहां के साइबर अपरधियों ने भोले-भाले ग्राहकों को अपना निशाना बनाना शुरू किया. बैंक अधिकारी बनकर ग्राहकों के मोबाइल पर फोन करने लगे… हैलो, मैं बैंक से बोल रहा हूं. आपके एटीएम कार्ड का एक्सपायरी डेट समाप्त होने वाला. अवधि बढ्ने के लिए आपके खाते की डिटेल चाहिए. उन्हें झांसे में लेकर ये फ्रॉड उनसे एटीएम कार्ड पर अंकित 16 डिजिट का नंबर और पिन कोड पूछ लेते थे. पलक झपकते ही उनके खाते ऑनलाइन पैसे उड़ाने लगे.
देश के 28 राज्यों की पुलिस दे चुकी है दस्तक
तमाम शिकायतों के बावजूद साइबर अपराधियों तक पुलिस नहीं पहुंच पाती थी. यही वजह रही कि साल 2015 तक ठगी धंधे में लिप्त साइबर अपराधियों की गिरफ्तारी नहीं हो पाती थी. धीरे-धीरे नियमों में बदलाव हुआ और स्थानीय थाना को आईटी एक्ट की धाराओं के तहत आरोपियों के विरूद्ध प्राथमिकी दर्ज करने व गिरफ्तारी का अधिकार मिला. इसके बाद अपराधियों की गिरफ्तारी शुरू हुई. इसके बाद से देश के 28 राज्यों की पुलिस करमाटांड़ के गांवों में दस्तक दे चुकी है.