बीहड़-बियाबान में तैयार हो रहे कबड्डी के नये पौधे

रांची। अनगड़ा ब्लॉक के गांव गांव में आजकल कबड्डी खिलाड़ी बनने की ललक देखते बनती है. इसके बलॉक ऑफिस के पास कबड्डी के एक ट्रेनिंग सेंटर पर बढ़ती भीड़ इसकी गवाही देती है. दिलचस्प यह भी है कि इस सेंटर तक आने को खिलाड़ी अपने अपने गांवों से 10-15 किमी का फासला घने, बियाबान जंगलों से तय करके आते हैं. चाहे पैदल हो या साइकिल से. औसतन हर दिन बोंगईबेड़ा, लुपूंग, बहिया, जोन्हा, टाटी सिल्वे के गांव कस्बों से खिलाड़ी अपने-अपने घरों से 3-4 बजे सुबह में जब निकलते हैं तो उस समय रास्तों में घना अंधेरा रहता है. जंगलों में जंगली जानवर का खतरा रहता है, सो अलग. पर इन सबकी परवाह किए बगैर जज्बे, जोश और जुनून से खतरों का नहीं, गौरव का सफर तय बखूबी कर रहे हैं. सब जूनियर, जूनियर और नेशनल टूर्नामेंटों में अपने हुनर से सबों को खूब मोह भी रहे हैं.

कदम दर कदम सफलता

रांची जिला कबड्डी संघ के महासचिव प्रवीण सिंह बताते हैं कि गांवों में प्रतिभाएं छिपी हैं, उन्ही मौकों की तलाश है. इसे देखते अनगड़ा के गांवों से उन्हें सामने लाने की मुहिम 2016-17 से शुरू की. प्राइवेट, सरकारी स्कूलों में जाकर बच्चों को कबड्डी से जुड़ने, उनमें संभावनाएं, ट्रेनिंग के मौकों के बारे में बताया. नतीजा निकला. सालभर होते होते दो दर्जन से अधिक प्लेयर्स (लड़के-लड़कियां) अरगोड़ा ग्राउंड में जुटने लगे. सुबह हर दिन 2-3 घंटे की ट्रेनिंग उन्हें निःशुल्क दी जाने लगी. परमेश्वर महतो सहित दूसरे लोगों ने कोचिंग में मदद की. अब नतीजा यह है कि दीपक महतो, आरती, सपना कुमारी, प्रीति, पूजा मुंडा जैसे खिलाड़ी अब सामने आ चुके हैं.

प्रीति कुमारी का चयन खेलो इंडिया में झारखंड टीम के लिये हुआ. उसके पिता राजेश महतो खेती करते हैं. पिछले दिनों सपना कुमारी 48वें जूनियर नेशनल चैंपियनशिप (1-4 सितंबर) में खेलकर आयी. बहिया गांव के आलोक मुंडा की बेटी पूजा मुंडा 31वें सब जूनियर नेशनल कबड्डी चैंपियनशिप (उत्तराखंड, 28 दिसंबर-31 दिसंबर 2021) में खेली. आरती गाड़ी और दीपक महतो 45वें जूनियर नेशनल कबड्डी चैंपियनशिप (15 फरवरी-18 फरवरी 2019, कोलकाता) में खेले.

मैट नहीं, मिट्टी पर ही हाथ आजमा रहे खिलाड़ी

रांची जिला कबड्डी संघ के मुताबिक आजकल कबड्डी मैच मैट पर खेले जाते हैं, मिट्टी पर नहीं. पर चूंकि साधन, संसाधनों की कमी है. ऐसे में मिट्टी पर ही खिलाड़ियों को प्रैक्टिस करना मजबूरी है. ट्रेनिंग सेंटर पर आने वाले अधिकांश प्लेयर्स बेहद साधारण पृष्ठभूमि के हैं. मां-पिता खेती बारी कर घर गृहस्थी चलाते हैं. ऐसे में कई खिलाड़ियों के लिए स्पोर्ट्स किट (जूते व अन्य) की कमी है. सेंटर तक आने जाने को साइकिल या दूसरे साधनों तक की कमी है. जूतों के अभाव में चोटिल होने का खतरा बना रहता है. मिट्टी पर प्रैक्टिस के बाद जब कभी नेशनल, सब जूनियर स्तरों पर मैट पर मैच खेलने की बारी आती है, तो रिजल्ट पर असर पड़ता है.

सरकार को कई बार आग्रह किया गया है कि वह अनगड़ा में कबड्डी खिलाड़ियों को उभार कर सामने लाने की संभावनाओं को बल दें. डे बोर्डिंग सेंटर और कोचिंग की सुविधा मिले तो उपयोगी होगा. अनगड़ा ब्लॉक और इसके गांवों से आने वाले खिलाड़ियों का स्टेमिना कबड्डी के लिहाज से अच्छा है. उन्हें अवसर मिले तो वे प्रतिष्ठित प्रो कबड्डी लीग तक अपना जलवा दिखा सकते हैं. फिलहाल तो अगर प्रतिभावान खिलाड़ियों को सरकार से स्कॉलरशिप भी मिल जाए तो राहत होगी.

क्या कहते हैं खिलाड़ी

सपना (12वीं स्टूडेंट) और पूजा (11वीं स्टूडेंट) कहती हैं कि उन्हें अब कबड्डी में ही आगे बढ़ने की लालसा है. भले इसकी ट्रेनिंग के लिये उन्हें अंधेरे में ही 12 किमी की दूरी तय कर ट्रेनिंग सेंटर रोज क्यों ना जाना पड़े. खेल कीट और साइकिल की कमी दूर हो जाये तो वे आगे नेशनल, इंटरनेशनल स्तर तक खेलने के लिये शत-प्रतिशत प्रयास करेंगी.

खेल विभाग करेगा पहल

खेल निदेशक संजय सिंह कहते हैं कि अनगड़ा में लगातार उभर कर सामने आ रहे कबड्डी खिलाड़ियों के मामले में वे जिला खेल पदाधिकारी से रिपोर्ट मंगाएंगे. इसके बाद आवश्यकता अनुसार जरूरी कदम उठाया जायेगा. खेल नीति के तहत योग्य खिलाड़ियों को स्कॉलरशिप भी मिलेगा.

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