खूंटी। झारखंड का खूंटी जिला, जिसे अपराधियों और नक्सलियों का गढ़ माना जाता था. नक्सली संगठनों में भाकपा माओवादी या पीएलएफआई हो, जिला में उनकी हुकूमत चलती थी. इनके सामने खूंटी पुलिस असहाय प्रतीत होती थी. नक्सलियों की दहशत शहरी इलाकों में भी कम नहीं थी. लोगों के बीच आपराधिक संगठन सम्राट गिरोह का भी आतंक था. 12 सितंबर को खूंटी जिला 15 साल का हो गया ।
जिला बनने से पहले और बाद तक शहरवासियों में इतना खौफ था कि कौन कब नक्सली ग्राहक बनकर आ जाए और उनकी हत्या कर दे, इसकी चिंता लोगों को सताती रहती थी. दूकानें खुलती थीं मगर शाम ढलते ही दूकानें बंद और शहर में सन्नाटा पसर जाता था. नक्सली अगर बंद बुला लेते थे तो शहर में कर्फ्यू जैसा माहौल हो जाता था. कुल मिलाकर ऐसा कहा जा सकता है कि खूंटी में पुलिस की नहीं बल्कि नक्सलियों की हुकूमत चलती हो.
रांची जिला से अलग होकर 12 सितंबर 2007 में खूंटी को जिला बनाया गया. भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली होने के कारण लोगों को बेहतरी और विकास की काफी उम्मीदें थीं. लेकिन जिला बनने के बाद भी ना तो नक्सली गतिविधियों में कमी आई और ना ही जिला में हत्याओं का सिलसिला थमा. नक्सलियों ने इन 14 वर्षों में हजारों लोगों की जान ले ली. साथ ही नक्सली कभी ग्रामीण को पुलिस मुखबिर बताकर मार देते थे तो कभी वर्चस्व कायम करने के लिए नरसंहार करते थे. व्यवसायियों को भी लेवी नहीं देने के कारण निशाना बनाते थे. इतना ही नहीं नक्सली संगठनों ने एक-दूसरे पर अपना वर्चस्व कायम करने के लिए कई पुलिसकर्मियों को भी मौत के घाट उतार दिया. साथ ही आधारभूत संरचनाओं के निर्माण में लगे वाहनों को भी आग के हवाले कर देते थे.