रांची। झारखंड की सियासत में शह मात का खेल जारी है. पक्ष-विपक्ष के बीच पिछले डेढ़ महीने से यह खेल चल रहा है. विपक्ष खास कर भाजपा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनके परिवार पर वार कर रहा है. वहीं हेमंत सोरेन विपक्ष के हर वार का लगातार माकूल जवाब दे रहे हैं. विपक्ष उन पर और उनके परिवार पर आरोपों की बौछार कर रहा है तो हेमंत नित नये निर्णय लेकर जनता के बीच अपनी पैठ को मजबूत करने में जुटे हुए हैं. पहले तो हेमंत ने पुरानी पेंशन स्कीम लागू कर विपक्ष के हर वार को कुंद किया. अब आज सम्पन्न कैबिनेट की बैठक में 1932 का खतियान आधारित स्थानीय और नियोजन नीति तथा ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण के प्रस्ताव पर मुहर लगा कर विपक्ष को करारा झटका दिया है. सवाल यह उठ रहा है कि यह हेमंत कैबिनेट का निर्णय है या राज्य में सियासी तूफान का एक नया एजेंडा. सवाल यह उठता है कि जिन दो अहम मुद्दों पर हेमंत कैबिनेट ने फैसला लिया है उस पर यह भी कहा गया है कि संविधान की 9 वीं अनुसूची के तहत इस मामले को केंद्र सरकार के पास भेजा जायेगा. यहीं सियासी दांव की बू आ रही है. गौरतलब है कि हेमंत के इस सियासी दांव का आभास विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान ही सामने आ गया था. सदन में विश्वास प्रस्ताव लाने के लिए बुलाये गये मानसून सत्र की विस्तारित अवधि में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने भाषण के दौरान कहा था कि बहुत जल्द उनकी सरकार 1932 के आधार पर स्थानीय नियोजन नीति बनायेगी और ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देगी. कहा था कि देखना है कि केंद्र में भाजपा सरकार के विधायकों और सांसदों का रुख इसपर क्या रहता है. सत्र समाप्ति के 9 दिनों के बाद ही हेमंत कैबिनेट ने इस पर मुहर लगा कर एक बड़ा सियासी दांव खेला है.
2001 में बाबूलाल कैबिनेट के फैसले को हाइकोर्ट ने किया था खारिज
गौरतलब है कि झारखंड में स्थानीय नीति और ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण का मामला नया नहीं है. झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की कैबिनेट ने राज्य में 69 फीसदी आरक्षण को पारित किया था. जिस में एससी को 14 फीसदी, एसटी को 28 फीसदी और ओबीसी को 27 फीसदी की वकालत की गयी थी. लेकिन जब यह मामला झारखंड हाइकोर्ट में गया तो खारिज हो गया. खारिज होने के पीछे यह तर्क दिया गया कि 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता. तब बाबूलाल सरकार की कैबिनेट ने हाइकोर्ट के निर्णय के आधार पर एससी को 10 फीसदी, एसटी को 26 फीसदी और ओबीसी को 14 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया. अब सवाल उठ रहा है कि हेमन्त कैबिनेट ने आरक्षण के कोटे को 60 फीसदी से बढ़ा कर 73 प्रतिशत किया है. क्या यह संवैधानिक प्रावधान के अनुरूप है या महज एक सियासी दांव है. संवैधानिक जानकारों का कहना है कि राज्य में चल रहे सियासी शह मात का ही यह एक बड़ा हिस्सा है. देखना दिलचस्प होगा कि हेमंत सोरेन ने जो यह सियासी दांव खेला है उसका हश्र क्या होता है.