रांची। भाजपा विधायक दल के नेता और पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी ने 1932 के खतियान मसले पर रविवार को फिर ताल ठोंका. सीएम हेमंत सोरेन की मंशा पर सवाल दागे. सोशल मीडिया पर इसे लेकर सिलसिलेवार पोस्ट किए हैं. इसमें कहा है कि 1932 का खतियान का प्रस्ताव महज राजनीतिक लाभ के लिए हेमंत सरकार ने लाया है. प्रस्ताव देखकर लगता है कि सरकार ने पूर्व के निर्णयों की समीक्षा नहीं की.
सीएम की नीयत संदेहास्पद
बाबूलाल मरांडी के मुताबिक हेमंत सोरेन सरकार अपने राजनीतिक स्वार्थ की मंशा से इस प्रस्ताव को लेकर आयी है. लोगों की जनभावना की पूर्ति इससे हो सकेगी, यह संदेहास्पद है. उल्टे इसके कानूनी दांवपेंच का सीधा नुकसान झारखंड वासियों को पहुंचने की आशंका बनी रहेगी.बाबूलाल ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल को याद किया. कहा कि झारखंड अलग राज्य बनने के बाद वे सीएम बने थे. उनकी प्राथमिकता यहाँ के लोगों के नियोजन की थी. सर्वदलीय बैठक बुलाई गई. इसमें सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि बिहार सरकार के द्वारा 1982 में जो स्थानीय और नियोजन नीति बनी थी, उसे ही अंगीकार किया जाए. कैबिनेट की बैठक में इसे अंगीकार कर लिया गया. इसमें लिखा हुआ था कि पिछले सर्वे राइट्स ऑफ रिकॉर्ड्स में जिनके पूर्वजों का नाम होगा, उन्हें स्थानीय माना जाएगा. जिले स्तर के तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की नौकरियों में प्राथमिकता दी जाएगी. अगर किसी एक पद के लिए समान योग्यता हो तो स्थानीय को प्राथमिकता दी जाएगी. इस निर्णय के बाद कुछ लोग हाईकोर्ट चले गए. कोर्ट ने इस मामले को निरस्त कर दिया. उसके बाद से ही स्थानीय एवं नियोजन नीति बनाने की मांग हो रही थी.
सदन में सरकार का था इंकार
इस साल 14 सितंबर को हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली राज्य कैबिनेट ने 1932 आधारित एक प्रस्ताव पारित कर दिया. जबकि इस वर्ष मार्च महीने में उन्होंने खुद विधानसभा की बैठक के दौरान सदन में कहा था कि अगर वो 1932 का प्रस्ताव लाते हैं तो कोर्ट इसे निरस्त करेगा और वह किसी भी हालत में नहीं टिकेगा. सरकार ने बिना किसी पूर्व न्यायिक निर्णयों की समीक्षा किए हड़बड़ी में यह प्रस्ताव पारित कर दिया, न ही पुराने अनुभव से कुछ सबक ली, न ही लोगों के हित की रक्षा कैसे हो इस पर कोई चिंता की. लगता है कि सिर्फ़ राजनैतिक लाभ की लालसा में सरकार ने हड़बड़ी में यह निर्णय लिया है. सरकार को इतनी हड़बड़ी दिखाने की बजाय इस प्रस्ताव का पूरा अध्ययन करना चाहिए था. एक ऐसा प्रस्ताव लाना था, जिससे सभी के हितों की रक्षा होती. लेकिन सिर्फ़ राजनैतिक लाभ के लिये लाया गया प्रस्ताव देखकर यही लगता है कि राज्य सरकार ने पूर्व के निर्णयों की कोई समीक्षा नहीं की.