दुमका। सरकार जनहित के लिए विकास की बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाती है. उस पर काफी खर्च होता है पर उसका लाभ जनता को मिला या नहीं इसकी मॉनिटरिंग नहीं होती और बाद में सरकारी उदासीनता हावी हो जाती है और कल्याणकारी योजना धरातल तक नहीं पहुंच पाती. इसका एक बड़ा उदाहरण दुमका के शिकारीपाड़ा प्रखंड के आदर्श ग्राम बालीजोर में देखा जा सकता है.
क्या है पूरा मामला
झारखंड की उप राजधानी दुमका के नक्सल प्रभावित शिकारीपाड़ा प्रखंड के बालीजोर गांव को 2018 में आदर्श ग्राम घोषित किया गया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास खुद इस गांव में पहुंचे थे और उन्होंने ग्रामीणों को आश्वस्त किया था कि तमाम सरकारी योजनाओं का लाभ उन्हें जल्द से जल्द लाभ मिलेगा. इसमें आवास, सिंचाई कूप, सड़क जैसी योजनाएं शामिल थीं. साथ ही साथ गांव की महिलाओं को रोजगार से जोड़ने के लिए उन्हें चप्पल बनाने के काम से जोड़ा गया. महिलाओं को चप्पल बनाने की ट्रेनिंग दी गई और कच्चा माल भी उपलब्ध कराया गया. गांव को आदर्श ग्राम बनाने की घोषणा, मुख्यमंत्री का पहुंचना, चप्पल का काम शुरू होना, ग्रामीणों के लिए एक सपने के सच होने के समान था.
तेजी से होने लगा काम
मुख्यमंत्री रघुवर दास के जाने के बाद जिला प्रशासन रेस हो गया. ग्रामीणों से आवास, सिंचाई कूप और अन्य सरकारी योजनाओं को उपलब्ध कराने के लिए आवेदन लिए गए. कुछ में काम भी शुरू हो गया. इतना ही नहीं गांव में एक चिल्ड्रन पार्क बन गया. इधर महिलाएं चप्पल बनाने लगीं. तैयार माल प्रशासन ही खरीदने लगा. इस रोजगार को विस्तृत रूप देने के लिए गांव में दो करोड़ की लागत से दो भवन बनने लगे. एक चप्पल निर्माण का ट्रेनिंग सेंटर और दूसरा चप्पल की फैक्ट्री.
सरकारी उदासीनता हावी
सारे एक्सरसाइज कुछ ही दिनों में सुस्त हो गए. चल रही विकास योजनाओं की गति मंद हो गई. चप्पल का निर्माण कार्य पूरी तरह से ठप हो गया. इतना ही नहीं चिल्ड्रन पार्क में भी ताला लटक गया. अब तो जिला प्रशासन का कोई भी नुमाइंदा बालीजोर गांव नहीं जाता.
क्या कहते हैं ग्रामीण
बालीजोर गांव के ग्रामीण काफी मायूस हैं. उनका कहना है कि आदर्श ग्राम सिर्फ नाम का रह गया है. हमने जो विकास के सपने देखे थे वो सपने चूर हो गए. कहीं कोई चप्पल नहीं बन रहा. अगर कुछ होना ही नहीं था तो इतना तामझाम क्यों किया गया. वे सरकार से मांग कर रहे हैं कि आदर्श ग्राम के अनुरूप हमारे गांव का विकास करें.
क्या कहते हैं जिले के उप विकास आयुक्त
इस पूरे मामले पर हमने जिले के उप विकास आयुक्त कर्ण सत्यार्थी से बात की. उन्होंने कहा कि शिकारीपाड़ा प्रखंड विकास पदाधिकारी से मैं इसकी सारी रिपोर्ट ले लेता हूं और खुद गांव जाकर ग्रामीणों के साथ बैठकर सारी समस्याओं के समाधान का प्रयास करूंगा.
सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता
मुख्यमंत्री जब खुद किसी गांव में जाते हैं और वहां विकास योजनाओं का लाभ ग्रामीणों को देने का वादा करते हैं तो जाहिर है कि लोगों की उम्मीदें बढ़ जाती हैं. ऐसे में वर्तमान सरकार को चाहिए कि वह बालीजोर गांव को आदर्श ग्राम के रूप में विकसित करें.