यासिर अराफ़ात@ झारखंड उजाला ब्यूरो
पाकुड़ : बदनाम होने के लिए क्षण भर का समय भी काफी होता है. लेकिन नाम,शोहरत और इज्जत कमाने में पूरी जिंदगी बीत जाती है. कहते हैं इज्जत और शोहरत का मालिक तो ईश्वर है, लेकिन कर्म भी मायने रखता है. सिर्फ रंग मंच से समाजसेवी का तमगा हासिल करने वाले बहुत मिल जाएंगे, वह भी चंद फोटो के सहारे. लेकिन पाकुड़ जिला की एक ऐसी शख्सियत जिन्होंने पूरी दुनिया में पाकुड़ जिला का नाम रोशन किया, कई बड़े-बड़े मंचों में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अवार्ड तक उस शख्सियत को नसीब हुआ. वह वही शख्स है जो रोजाना पाकुड़ रेलवे स्टेशन में भूखे पेटों की भूख मिटाता है. बस फर्क इतना की फोटो खिंचवाने का शौकीन नहीं. पाकुड़ जिला को छोड़कर भी पूरे झारखंड और पश्चिम बंगाल के लोगों का सहारा बने इस शख्स की तारीफ लिखते लिखते शायद कलम की स्याही जवाब दे दे,लेकिन तारीफ ख़त्म ना हो. कहते हैं |
सब तो अपने लिए जीते हैं, दूसरों के लिए जीने का मजा ही कुछ और है. जिंदगी तो बस चंद दिनों का तोहफा है, फिर तो शमशान और कब्रिस्तान की तरफ ही रुख करना सबकी मजबूरी है. लेकिन जिंदगी खत्म होने के बाद भी कुछ यादें, कुछ नाम हमेशा के लिए लोगों के ज़हन में रह जाता है. वह भी सिर्फ कर्म के नाम पर.बगैर नाम लिए भी इस अखबार के पन्ने से भी लोग उस शख्सियत को दिल से महसूस कर लेते हैं. जिस इंसान के साथ जब लाखों लोगों की दुआएं शामिल हो उसकी इज्जत अफजाई में कुदरत का चार चांद लग जाता है. अकेले ही शुरू किया था सफर बेसहारा लोगों का साथ मिलता गया और कारवां बनता गया. उस कारवाँ ने फैलाई रोशनी पूरी कायनात के अंदर, क्या सागर क्या समंदर. सही मायने में हर पिछड़े क्षेत्र में इस तरह की शख्सियत का होना उस क्षेत्र के लिए एक खुशकिस्मती जैसी होती है. हालांकि इस खुशकिस्मती को फोटो खिंचवाने वाले समाजसेवी महसूस नहीं कर सकते.